गणेश जी प्रथम पूजयते क्यों? गणेश जी को प्रथम क्यों पूजा जाता है? सबसे पहले शुभ कार्य मे गणेश जी को क्यों पूजते है?
ये सवाल सबके मन मे रहता है तो इसी के बारे मे बताते हुए हम आपको गणेश जी के ही मंत्र से शुरू करेंगे।
वक्र तुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ: । निर्विध्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा ।।
मंत्र का अर्थ :- हे गणेश जी! आप महाकाय हैं। आपकी सूंड वक्र है। आपके शरीर से करोड़ो सूर्यों का तेज निकलता है। आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे सारे कार्य निर्विघ्न पूरे करे।
विधि :- घर से बाहर निकलते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
लाभ :- जिस कार्य के लिए घर से निकलते है, वह पूरा होता है और यश मिलता है।
गणेश जी प्रथम पूज्य क्यों है?
अब हम आपको बताएँगे कि गणेश जी सभी कार्यों में सर्वप्रथम क्यों पूजे जाते है। गणेशजी की प्रथम पुजा के संबंध मे पुराणिक कथाएँ भी प्रचलित है।
एक कथा के अनुसार :- जब गणेशजी के पिता शिव द्वारा गणेशजी का सिर काटे जाने पर गणेशजी की माता पार्वती बहुत क्रोधित हुई। गज का सिर लगाने के बाद भी पार्वती माता शिव जी से नाराज रही तो शिव ने माता पार्वती को वचन दिया कि उनका पुत्र गणेश कुरूप नहीं कहलाएगा बल्कि उसकी पुजा सभी देवताओं से पहले की जाएगी।
Ganesh Ji Pratham Pujya Kaise Bane
एक अन्य कथा के अनुसार :- एक बार सभी देवताओं मे श्रेष्ठ होने का विवाद छिड़ गया। आपस मे झगड़ा सुलझाने के लिए वो सभी ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी सभी देवताओं को लेकर महादेव शिव जी के पास गए। तो भोलेनाथ शिव जी ने यह शर्त रखी की जो भी पूरे विश्व की परिकर्मा करके सबसे पहले यहाँ पंहुचेगा वही श्रेष्ठ होगा और उसी की पुजा सर्वप्रथम होगी। शर्त सुनते ही सभी देवता शीघ्रता से अपने-अपने वाहनों मे बेठ विश्व की परिकर्मा के लिए प्रस्थान कर गए लेकिन गणेश जी अपनी जगह से हिले नहीं, गंभीरता से कुछ सोचते रहे। थोड़ी देर बाद उन्होने अपने माता-पिता से एक साथ बेठने का अनुरोध किया, उसके बाद गणेशजी ने उनके माता-पिता (पार्वती-शिव) की परिकर्मा कर ली और इसी तरह अपनी बुद्धि चतुर्य से माता(पृथ्वी) और पिता(आकाश) की परिकर्मा कर सर्वश्रेष्ठ पूजन के अधिकारी बन गए।
निश्चय ही गणेश जी की बुद्धि चतुर्य और योग्यता से ही उन्हे प्रथम पूजन का सम्मान मिला।